नामकरण संस्कार, क्यों है जरूरी क्या है महत्व
जानें क्या है नामकरण संस्कार, बच्चे के लिए क्या है इसका महत्व
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से पांचवां संस्कार नामकरण है
आचार्य आनन्द जी आपको गर्भाधारण, पुंसवन, सीमंतोन्नय, एवं जातकर्म, संस्कार के बारे में पहले ही बता चुके हैं और आज हम आपको (नामकरण) संस्कार के बारे में बताने जा रहे हैं
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है इस संस्कार में नवजात बच्चे का नाम रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कर्मों की पहचान नाम से होती है। ऐसे में नाम सोच समझकर कर रखा जाना बेहद आवश्यक है कहा भी जाता है (जतो नाम ततो गुणा) हिंदू धर्म में किसी भी शिशु का नामकरण पूरे विधि विधान से किया जाता है।
नामकरण संस्कार का महत्व इस श्लोक से समझा जा सकता है
आयुर्वेदभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुदृष्टं मनीषिभि:।।
नामकरण संस्कार से जातक आयु और तेज में बढ़ोत्तरी होती है।
साथ ही अपने नाम, आचरण, कर्म से जातक ख्याति प्राप्त करता है और अपनी अलग पहचान बनाता है।
(जानें कब किया जाता है नामकरण संस्कार)
आमतौर पर नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 10 दिन बाद यानी की 11 वे दिन में किया जाता है। माना जाता है कि शिशु के जन्म से सूतक प्रारंभ हो जाता है। इसकी अवधि अलग-अलग होती है।
पाराशर स्मृति के अनुसार, ब्राह्मण वर्ण में सूतक 10दिन, क्षत्रियों में 12 दिन, वैश्य में 15 दिन और शूद्र एक महीने का सूतक माना गया है। हालांकि, आज के समय में वर्ण व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई है ऐसे में इसे 11वें दिन किया जाता है। पारस्कर गृहयसूत्र में कहा गया है,
दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति
इसका मतलब 10वें दिन भी नामकरण संस्कार किया जाता है
यह संस्कार पिता द्वारा संपन्न होता है। वहीं, यह संस्कार 100वें दिन या शिशु के जन्म से 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी किया जाता है।
गोभिल गृहयसूत्रकार लिखते भी हैं,
जननादृशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे।
संवत्सरे वा नामधेयकरणम्।।
इस तरह किया जाता है नामकरण संस्कार
नामकरण संस्कार के दिन पञ्चांग पूजन गणपति पूजन हवन किया जाता हैं तथा बच्चों को शहद चटाया जाता है। फिर जातक शिशु को धरती माता को भी नमन कराया जाता है। साथ ही सभी देवी-देवताओं का भी स्मरण किया जाता है। शिशु के लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए भी प्रार्थना की जाती है।
फिर कुल पुरोहित जी के द्वारा जन्मकुंडली का फलादेश तथा जातक के ग्रह नक्षत्र एवं राशि,वर्ण,नाड़ी,तथा गण,का उच्चारण किया जाता हैं।
तथा शरीर के चिन्नो के बारे में बताया जाता हैं और बालक के उज्जवल भविष्य की कामना की जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसी नक्षत्र के अक्षर से जातक का नाम रखा जाए तो बेहतर होता है हालांकि, नाम वंश, गौत्र आदि का भी ध्यान रखकर रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नामकरण में दो नाम रखे जाते हैं। इनमें से एक नाम प्रचलित होता है। वहीं, दूसरा गुप्त नाम होता है। यह जन्म पत्री में दर्ज होता है।
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#आध्यात्मिक_गुरु_आचार्य_आनन्द_प्रकाश_नौटियाल जी से
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