अन्नप्राशन संस्कार- शिशु को पहली बार अन्न कब और कैसे ग्रहण कराए ?Annaprasan Sanskar Sanatan Dharma Culture

अन्नप्राशन संस्कार- शिशु को पहली बार अन्न कब और कैसे ग्रहण कराए ?
Annaprasan Sanskar Sanatan Dharma Culture

सनातन धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व बताया गया है। ये सभी संस्कार अपना एक ख़ास महत्व रखते है। इन्ही में से सप्तम संस्कार है अन्नप्राशन संस्कार। 
आज हम जानेंगे आचार्य आनन्द जी से इस महत्त्वपूर्ण संस्कार के बारे में
जो खान-पान संबंधी दोषों को दूर करने के लिए शिशु के जन्म के 6-7 महीने बाद ही आरंभ किया जाता है। सरल शब्दों में कहे तो शिशु को अन्न खिलाने की शुरुआत को ही अन्नप्राशन कहा जाता है। चूकि लगभग 6 माह तक बच्चे मां के दूध पर ही निर्भर रहते हैं, जिसके बाद छठे महीने के बाद बच्चों को पहली दफा अन्न ग्रहण कराने के लिए अन्नप्राशन संस्कार किये जाने का विधान है। इसी कारण इस संस्कार का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। 
आज आचार्य आनन्द जी आपको बताएंगे कि आखिर क्या है अन्नप्राशन संस्कार और क्यों हैं हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्व साथ ही इस संस्कार को करते वक़्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
कब किया जाना चाहिए अन्नप्राशन संस्कार ?
अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जन्म के बाद छठे या सातवें महीने में ही किया जाना शुभ होता है। क्योंकि इस समय बच्चे के दांत निकलने लगते हैं, जिससे बालक हल्का भोजन पचाने में सक्षम हो जाता है। इससे पहले तक बच्चे केवल मां के दूध पर ही निर्भर रहते हैं।

अन्नप्राशन संस्कार का महत्व
हिन्दू शास्त्रों में अन्न को प्रत्येक प्राणियों का प्राण कहा गया है। खुद गीता में भी इस बात का उल्लेख है कि अन्न से ही प्राणी जीवित रहते हैं और अन्न से ही ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए अन्न का व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्व है। इसके साथ ही छः मास तक मां का दूध ही शिशु के लिए सबसे पौष्टिक भोजन माना जाता है। फिर इसके बाद बालक को अन्न ग्रहण करवाया जाता है, जिसके लिए अन्नप्राशन संस्कार का बहुत अधिक महत्व होता है। साइंस की माने तो मां के गर्भ में शिशु जो भोजन करता हैं उसमें कुछ मलिन तत्व भी वो ग्रहण कर लेता है। ऐसे में उन सभी मलिन भोजन के दोष के निवारण और शिशु को शुद्ध भोजन कराने की प्रक्रिया को अन्नप्राशन संस्कार कहा गया है।
सर्व प्रथम अपने कुल पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त दिन बार निकाले 
तथा अपने कुल पुरोहित जी को अन्नप्रासन पूजन कार्य हेतु निमंत्रण दे। जिससे की पुरोहित जी द्वारा विधि विधान से पूजन कार्य सम्पादित हो
अन्नप्राशन संस्कार करने का सही तरीका
अन्नप्राशन संस्कार समारोह करने से पूर्व इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है कि ये प्रक्रिया बिलकुल विधि पूर्वक तरीके से हो और अनुष्ठान करने से पूर्व हर सामग्री पूजा में मौजूद हो। 

इस संस्कार के लिए पूजा सामग्री (अनुष्ठानों के लिए आवश्यक पवित्र वस्तुएँ) इस प्रकार है

अन्नप्राशन संस्कार के लिए एक कटोरी और चम्मच। बच्चे को भोजन चटाने के लिए चाँदी के चम्मच का इस्तेमाल करना सबसे ज़्यादा शुभ होता है।
संस्कार के लिए चावल या सूजी से बनी खीर, शहद, शुद्ध देसी घी, तुलसी के पत्ते और गंगाजल लें।
इस दिन बच्चे को पहली बार अन्न ग्रहण कराया जाता है, इसी लिए सामग्री चुनते वक़्त इसकी शुद्धता और गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सर्व प्रथम पात्र की शुद्धता अवश्य करनी चाहिए
बच्चे को खीर चटाने के लिए चाँदी का उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि चाँदी को मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा सकारात्मक धातु माना जाता है। जो चंद्र ग्रह से संबंध रखता है जिससे बच्चे को शीतलता प्रदान होती हैं
ऐसे में बालक को सबसे पहला अन्न अगर चाँदी से खिलाया जाए तो इससे उसके न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक विकास को भी मदद मिलती है। इसी महत्व को देखते हुए संस्कार में पात्र पूजन का विधान है।

पात्र पूजन में सबसे पहले मन्त्रोच्चार के साथ बालक के माता पिता को पात्र(बर्तन)को चन्दन और रोली लगाकर गंगाजल से शुद्ध करते हुए उसकी पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद रोली से स्वास्तिक बनाएँ और पात्र को फूल चढ़ाएँ।
इसके बाद इस 👇मंत्र उच्चारण करते हुए प्रार्थना करें कि पवित्र पात्र अपने शुद्ध और सकारात्मक प्रभाव से बालक के पहले अन्न को दिव्यता प्रदान करें और उसकी सहायता करें।

ॐ हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्यापिहितं मुखम्।
तत्त्वं पूषन्नपावृणु, सत्यधर्माय दृष्टये॥

अन्न संस्कार

शिशु को पेय से अन्न पर लाते समय चाटने योग्य खीर ग्रहण कराई जाती है। ये खीर बालक की आयु, पाचन-क्षमता तथा आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाती है। इसके साथ ही खीर में शहद, घी, पवित्र तुलसी के पत्ते, और गंगाजल डालना चाहिए। क्योंकि ये सभी चीज़े शिशु के लिए पौष्टिक, शुभ होती हैं।
आचार्य आनन्द जी के कथन के अनुसार माता पिता
बालक को अन्न ग्रहण कराते वक़्त इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि भोजन की मात्रा आवश्यकता के अनुसार ही हो। क्योंकि यदि अधिक खिलाया जाए तो इससे बच्चे को अपच होने का खतरा बना रहेगा।

चलिए अब जानते हैं शिशु के पहले भोजन को तैयार करने की सही प्रक्रिया। सुनिश्चित करें कि पवित्र अग्नि में 5 प्रसाद बनाने के बाद भी बच्चे को खिलाने के लिए भोजन की मात्रा बची रहे।

सबसे पहले मंत्र का उच्चारण करते हुए अन्न प्राशन के लिए रखें गए पात्र में एक-एक करके भावनापूर्वक सभी वस्तुएँ मिलाई जाएं। 

ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।

अब पात्र में खीर के साथ थोड़ा शहद मिलाएँ। इस दौरान इस मन्त्र का उच्चारण करें 
ॐ मधुवाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः। ॐ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः। मधुद्यौरस्तु नः पिता। ॐ मधुमान्नो वनस्पतिः मधुमाँ२ऽअस्तु सूर्य्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः।
परिवार के सभी सदस्य प्रार्थना करें कि शहद की तरह ही बच्चे में भी अच्छी नैतिकता और मधुर वाणी का संचार हो।

अब इस मंत्र का जप करते वक़्त पात्र में थोड़ा सा घी डालें 

ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः। पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽ उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा॥

ये घी बच्चे को न केवल नरम और दयालु स्वभाव का बनाएगा बल्कि उसे अशिष्टता से भी दूर रखने में मदद करेगा।
फिर इस मंत्र का जप करते वक़्त पात्र में कुछ तुलसी पत्र डालें
ॐ या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामह शतं धामानि सप्त च।

यह औषधि शिशु को न केवल शारीरिक बल्कि उसे कई तरह के मानसिक रोगों से भी लड़ने में मदद करती हैं। चूकि तुलसी भगवान को समर्पित होती हैं इसलिए इसकी मदद से अभिभावक बालक में भी तुलसी रूपी संस्कार होने की प्रार्थना करते हैं।
अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए गंगाजल की कुछ पवित्र बूँदें पात्र में डालकर मिलाएं 
ॐ पंच नद्यः सरस्वतीम् अपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा सो देशेऽभवत्सरति॥
गंगा जल भोजन में मिश्रित सभी अशुद्धियों को मारकर उस भोजन को पवित्र और शुद्ध बनाता है।
मान्यता है कि इन सभी अलग-अलग पवित्र सामग्रियों के मिश्रण से शिशु के चरित्र में पवित्र नैतिकता का संचार होता है।
अंत में सभी वस्तुओं को ठीक से मिलाकर उस मिश्रण को पूजा स्थान में रखें ताकि उस अन्न को भगवान का आशीर्वाद मिल सके।
अब हवन (अग्नि यज्ञ अनुष्ठान) की शुरुआत से लेकर गायत्री मंत्र की आहुतियाँ पूरी करें।

विशेष आहुति
गायत्री मन्त्र कीआहुतियाँ पूरी होने पर तैयार किया गया अन्न (खीर) से अग्नि में शिशु के नाम की 5 विशेष आहुतियाँ नीचे लिखे मन्त्र के साथ भगवान को अर्पित करें:

ॐ देवीं वाचमजन्यन्त देवाः तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति।
सा नो मन्द्रेषपूर्जं दुहाना देनुर्वागस्मानुप दुष्टुतैतु स्वाहा।

इदं वाचे इदं न मम।

पूजन हवन अनुष्ठान पूरा होने के पश्चात अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बची हुई खीर से बच्चे को प्राशन कराएँ (खिलाए)

ॐ अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः।
प्रप्रदातारं तारिषऽऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥

चूकि अनुष्ठान के बाद खीर बहुत पवित्र हो जाती हैं इसलिए अभिभाव शिशु को खीर ग्रहण कराते वक़्त भगवान से प्रार्थना करते हैं कि खीर के सभी तत्वों से बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा, मानसिक स्थिरता, महान विचार क्षमता और अच्छा चरित्र प्रदान हो।
अन्नप्रासन के बाद बच्चे को सभी का आशीर्वाद दिलाए माता पिता को भी बच्चे को आशीर्वाद देने के लिए भगवान का दिल से धन्यवाद करना चाहिए और संस्कार समारोह में मौजूद हर व्यक्ति को प्रसाद रूपी खीर बांटनी चाहिए। प्रसाद को बांटना और खाना दोनों पुण्य प्राप्ति के कार्य होते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नामकरण संस्कार, क्यों है जरूरी क्या है महत्व

सीमन्तोन्नयन संस्कार कैसे करें

मनुष्य जीवन का अन्त अंतिम संस्कार