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मुंडन संस्कार चूड़ाकर्म संस्कार mundan sanskar

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मुंडन संस्कार चुड़ाकर्म संस्कार Mundan Sanskar Chudakarma Sanskar  हिन्दू धर्म संस्कारों में चूड़ाकरण (मुडंन) संस्कार अष्टम संस्कार है। अन्नप्राशन संस्कार करने के बाद किया जाने वाला सनातनी संस्कार चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है। यह संस्कार पहले  तीसरे या पांचवे वर्ष में कर लेना चाहिये। (मनुस्मृति) के अनुसार द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार तथा लोकाचार के अनुसार) मुण्डन कराना चाहिये ऐसा वेद का आदेश है। इसका कारण यह है कि माता के गर्भ से आये हुए सिर के बाल अर्थात केश अशुद्ध होते हैं। दूसरी बात वे झड़ते भी रहते हैं। जिससे शिशु के तेज़ की वृद्धि नहीं हो पाती है। इन केशों को मुँडवाकर शिशु की शिखा (चोटी) रखी जाती है।  चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।। शिखा से आयु और तेज़ की वृद्ध होती है। बालक का सर लगभग तीन वर्ष की अवस्था तक कोमल रहता है। तत्पश्चात धीरे-धीरे कठोर होने लगता है। गर्भावस्था में ही उसके सिर पर उगे बालों के रोमछिद्र इस अवस्था तक कुछ बंद हो जाते हैं। इस लिय शिशु के बालों को उस्तरें से साफ कर देन...

अन्नप्राशन संस्कार- शिशु को पहली बार अन्न कब और कैसे ग्रहण कराए ?Annaprasan Sanskar Sanatan Dharma Culture

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अन्नप्राशन संस्कार- शिशु को पहली बार अन्न कब और कैसे ग्रहण कराए ? Annaprasan Sanskar Sanatan Dharma Culture सनातन धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व बताया गया है। ये सभी संस्कार अपना एक ख़ास महत्व रखते है। इन्ही में से सप्तम संस्कार है अन्नप्राशन संस्कार।  आज हम जानेंगे आचार्य आनन्द जी से इस महत्त्वपूर्ण संस्कार के बारे में जो खान-पान संबंधी दोषों को दूर करने के लिए शिशु के जन्म के 6-7 महीने बाद ही आरंभ किया जाता है। सरल शब्दों में कहे तो शिशु को अन्न खिलाने की शुरुआत को ही अन्नप्राशन कहा जाता है। चूकि लगभग 6 माह तक बच्चे मां के दूध पर ही निर्भर रहते हैं, जिसके बाद छठे महीने के बाद बच्चों को पहली दफा अन्न ग्रहण कराने के लिए अन्नप्राशन संस्कार किये जाने का विधान है। इसी कारण इस संस्कार का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है।  आज आचार्य आनन्द जी आपको बताएंगे कि आखिर क्या है अन्नप्राशन संस्कार और क्यों हैं हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्व साथ ही इस संस्कार को करते वक़्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। कब किया जाना चाहिए अन्नप्राशन संस्कार ? अन्नप्राशन संस्कार शिशु के जन...

Evacuation Sanskar Sanatan Tradition निष्क्रमण संस्कार सनातन परम्परा

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Evacuation Sanskar Sanatan Tradition निष्क्रमण संस्कार सनातन परम्परा के अनुसार आज हम जानेंगे सनातन परंपरा के अंतर्गत 16 संस्कारों में से निष्क्रमण संस्कार षष्ठम संस्कार के बारे में आचार्य आनन्द जी से  निष्क्रमण का अर्थ है 👉 बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है। उस समय निष्क्रमण-संस्कार किया जाता है। इसमें बालक को घर के भीतर से बाहर निकलने को निष्क्रमण कहते हैं। इसमें बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाता है। बच्चे के पैदा होते ही उसे सूर्य के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये। इससे बच्चे की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिये जब बालक की आँखें तथा शरीर कुछ पुष्ट बन जाये, तब इस संस्कार को करना चाहिये। निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः। इस संस्कार का फल ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाताओं ने शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि के लिय महत्वपूर्ण बताया है  जन्मे के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती है तब इस संस्कार को विधिवत सम्पादित करना चाहिए कुलपुरोहित ...

सनातन धर्म हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार

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सनातन धर्म संस्कृति के सोलह संस्कार आध्यात्मिक गुरु आचार्य आनन्द प्रकाश नौटियाल जी के साथ Sixteen Sanskars of Sanatan Dharma Culture   गर्भाधान संस्कार conception ceremony हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गार्हस्थ्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए। वैदिक काल में यह संस्कार अति महत्वपूर्ण समझा जाता था। पुंसवन संस्कार Punsavan Sanskar गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास की दृष्टि से यह संस्कार उपयोगी समझा जाता है। गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में इस संस्कार को करने का विधान है। हमारे मनीषियों ने सन्तानोत्कर्ष के उद्देश्य से किये जाने वाले इस संस्कार को अनिवार्य माना है। गर्भस्थ शिशु से सम्बन्धित इस संस्कार को शुभ नक्षत्र में सम्पन्न किया जाता है। पुंसवन संस्कार का प्रयोजन स्वस्थ एवं उत्तम संतति को जन्म देना है। विशेष तिथि एवं ग्रहो...

नामकरण संस्कार, क्यों है जरूरी क्या है महत्व

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जानें क्या है नामकरण संस्कार, बच्चे के लिए क्या है इसका महत्व हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से पांचवां संस्कार नामकरण है आचार्य आनन्द जी आपको गर्भाधारण, पुंसवन, सीमंतोन्नय, एवं जातकर्म, संस्कार के बारे में पहले ही बता चुके हैं और आज हम आपको (नामकरण) संस्कार के बारे में बताने जा रहे हैं जैसा कि इसके नाम से पता चलता है इस संस्कार में नवजात बच्चे का नाम रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कर्मों की पहचान नाम से होती है। ऐसे में नाम सोच समझकर कर रखा जाना बेहद आवश्यक है कहा भी जाता है (जतो नाम ततो गुणा) हिंदू धर्म में किसी भी शिशु का नामकरण पूरे विधि विधान से किया जाता है। नामकरण संस्कार का महत्व इस श्लोक से समझा जा सकता है आयुर्वेदभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा। नामकर्मफलं त्वेतत् समुदृष्टं मनीषिभि:।। नामकरण संस्कार से जातक आयु और तेज में बढ़ोत्तरी होती है।  साथ ही अपने नाम, आचरण, कर्म से जातक ख्याति प्राप्त करता है और अपनी अलग पहचान बनाता है। (जानें कब किया जाता है नामकरण संस्कार) आमतौर पर नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 10 दिन बाद यानी की 11 वे दिन में किया जाता है। माना ज...

पुंसवन संस्कार कैसे करते हैं

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सत्य सनातन धर्म की जय हो  आइए आज हम जानेंगे 16 संस्कारों के अंतर्गत आने वाले द्वितीय संस्कार के बारे में आध्यात्मिक गुरु आचार्य आनन्द प्रकाश नौटियाल जी से क्या है पुंसवन संस्कार और कैसे करे ? पुंसवन संस्कार को संपन्न करने का सही समय हिन्दू धर्म के सभी संस्कारों में से पुंसवन संस्कार दूसरा संस्कार माना जाता है। इस संस्कार को शिशु के माता के गर्भ में आने के तीन माह के बाद ही संपन्न करवाया जाता है। इस संस्कार को विशेष रूप से महिला के गर्भवती होने के महज तीन माह के बाद ही इसलिए संपन्न किया जाता है क्योंकि पैदा होने से तीन महीने के बाद शिशु के मस्तिष्क का विकास होना प्रारंभ हो जाता है। पुंसवन कर्म का विशेष महत्व आचार्य आनन्द के अनुसार हिन्दू धर्म में पुंसवन कर्म विशेषरूप से एक स्वस्थ्य और तंदुरुस्त बच्चे की चाह में किया जाता है। मान्यता अनुसार माता के गर्भ में आने के तक़रीबन तीन महीने तक शिशु के लिंग की पहचान नहीं की जा सकती, इसलिए इससे पहले ही पुंसवन संस्कार संपन्न करवाना उचित माना जाता है। इस संस्कार का उद्देश्य विशेष रूप से गर्भ में आने वाले शिशु की रक्षा करना होता है। इसके अलावा कई ...

गर्भाधान संस्कार विधि क्या है

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पहला संस्कार: गर्भाधान योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन का यह पहला संस्कार है आइए जानते है आध्यात्मिक गुरु आचार्य आनन्द प्रकाश नौटियाल जी से की इसे क्यों किया जाता हैं गर्भाधान संस्कार कहा गया है गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है. उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान के लिए अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए. कहा गया है,  जन्मना जायते शुद्रऽसंस्काराद्द्विज उच्यते।। यानि जन्म से सभी शुद्र होते हैं और संस्कारों द्वारा व्यक्ति को द्विज बनाया जाता है. इसके तहत बच्चे के जन्म के पहले स्त्री और पुरुष को अपनी सेहत और मानसिक अवस्था का अनुमाप करना चाहिए श्रेष्ठ आचार्य पंडित या कुलपुरोहित जी से इस संस्कार के लिय शुभ मुहूर्त निर्धारित करवाए तिथि, वार, नक्षत्र,योग, करण, आदि के अनुसार ही गर्भधारण करना चाहिए. ताकि शिशु निरोग और गुणवान हो सके  आध्यात्मिक गुरु आचार्य आनन्द प्रकाश नौटियाल उत्तराखंड धाम